Sunday, December 25, 2011

बेटी से तुम डरते हो?

अग्नि का दम भरते हो
पर बेटी से तुम डरते हो?
जब आई पहली बार पहन कर बूट और वर्दी
क्या दिया तुमने उसे-
सिर्फ निंदा की फुसफुसाहट और एहसास की सर्दी?
अग्नि का दम भरते हो
पर बेटी से तुम डरते हो?
कोमल काया को धिक्कारा, तो लौह बनने की उसने ठानी
कितना सिसकी अकेले में
मगर लहराती लटो को काट, beret पहन कर ही मानी
अग्नि का दम भरते हो
पर बेटी से तुम डरते हो?
बचपन में कुत्ते, छिपकली और भूत से बचाती थी वो
तो फिर आज कैसे बन बैठे
तुम उसके रक्षक: स्व-घोषित और दम्भी, हाँ बोलो?
अग्नि का दम भरते हो
पर बेटी से तुम डरते हो?
"अग्नि" बना कर दे तुम्हारे हाथों में तो ठीक है
मगर दागने का अधिकार मांगे
तो कमज़ोर है, लापरवाह, कमतर मगर ढीठ है
अग्नि का दम भरते हो
पर बेटी से तुम डरते हो?
कितने दिन और देखेगी नीचे ही से उस कांच की छत को
जो दमन करे व्यक्तित्व का
गला घोंटे कुछ सपनो का, और बुझा दे कुछ सितारों को
तो क्या सही समझें इसे कि
अग्नि का दम भरते हो
पर बेटी से तुम डरते हो?

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